मनुष्य अन्य
जीवों से दो ही बातों में भिन्न है। पहला, उसके पास श्रम करने
के साथ नये औजार बना सकने की क्षमता है और दूसरा, उसके पास भाषा
है। दुनिया की हज़ारों भाषाओं में एक है— हिन्दी। हिन्दी की लिपि
नागरी है, जिसे देवनागरी भी कहा जाता है। नागरी लिपि हिन्दी के
साथ-साथ संस्कृत, नेपाली, मराठी, भोजपुरी, मैथिली,
मगही सहित कई भाषाओं के लिए इस्तेमाल की जाती है। भोजपुरी की पुरानी
लिपि कैथी थी, जो आज की गुजराती लिपि से काफी हद तक मेल खाती
है। लिपि एक खास अक्षर समूह से जानी जाती है, जिसके अक्षरों का
प्रयोग भाषा के लिखित रूप के लिए किया जाता है। हिन्दी आर्य भाषाओं में सबसे ज़्यादा
बोली और लिखी जाने वाली भाषा है। आर्य भाषा का अर्थ इससे ज़्यादा लगाना उचित नहीं है
कि यह उन भाषाओं में शामिल है, जो संस्कृत से निकलकर स्वतंत्र
रूप में स्थापित हो गईं। संस्कृत को सभी भाषाओं की माता मानना अज्ञानता और ज़िद्द के
कारण है। वैज्ञानिक प्रमाणों की बात करने पर यह धारणा धराशायी हो जाती है कि संस्कृत
से दुनिया की सारी भाषाएँ निकली हैं। भारत के दक्षिणी राज्यों की तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ भाषाएँ आर्य भाषाओं से उत्पन्न
नहीं हैं। तमिल काफी पुरानी, समृद्ध और संस्कृत से स्वतंत्र भाषा
है।
यहाँ यह बताना
भी आवश्यक है कि चीन, वियतनाम, ताइवान,
जापान, कोरिया आदि देश चित्रलिपियों वाले देश हैं।
भाषा कैसे उत्पन्न हुई, क्या ईश्वर ने भाषाओं का निर्माण किया
जैसे प्रश्न लंबी चर्चा वाले हैं। फिलहाल हम अपने विषय पर वापस आकर बात करते हैं।
यह मानना कि ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’ अंग्रेज़ी वर्णमाला के अक्षर हैं, उतना उचित नहीं है, जितना समझा जाता है। ये रोमन वर्णमाला
के अक्षर हैं। उसी तरह हिन्दी की वर्णमाला भी मूल रूप से संस्कृत से निकलती है। लेकिन
हिन्दी में कई अक्षर अरबी और अंग्रेज़ी के संपर्क में आने के बाद जुड़ गए हैं। अक्षर
भाषा या कहें, भाषा के लिखित रूप की कोशिकाएँ हैं। अक्षर वे चित्र हैं, जो किसी भाषा में एक स्थान (लिखते या छापते समय)
लेते हैं। हिन्दी में स्वर और व्यंजन, दो प्रकार
हैं, जो पूरी वर्णमाला को दो भागों में बाँटते हैं। स्वर वे अक्षर हैं, जिनके उच्चारण के लिए मुँह के अंदर जीभ का किसी अंग से स्पर्श नहीं होता। हम
कह सकते हैं कि स्वर वे अक्षर हैं, जिनका उच्चारण गूंगा व्यक्ति
भी कर सकता है। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अँ, अः और ऑ वर्तमान हिन्दी
के आवश्यक स्वर हैं। अं और अः को व्यंजन मानने वाले भी कई वैयाकरण हैं। ऋ, ऋ का दीर्घ रूप और अं भी स्वर माने जाते हैं, लेकिन वे
वास्तव में बिना जीभ की सहायता के नहीं बोले जाते। ‘ऑ’
अंग्रेज़ी से लिया गया स्वर है।
व्यंजन वे वर्ण
या अक्षर हैं, जिनके उच्चारण में स्वर की सहायता ली जाती है। व्यंजन
अक्षरों के पूर्ण उच्चारण में ‘अ’ की सहायता
ली जाती है, लेकिन आधे उच्चारण में स्वर की सहायता नहीं ली जाती।
क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श स ष और ह के साथ-साथ क़ ख़ ग़ ज़ फ़ ड़ ढ़ भी व्यंजन माने जा सकते हैं आज की हिन्दी में। ड और ड़, ढ और ढ़, क और क़, ख और ख़,
ग और ग़, ज और ज़ तथा फ और फ़ अलग-अलग हैं, इन्हें एक न समझें।
हिन्दी में
कुछ चिन्हों का प्रयोग भी होता है, उनकी जानकारी भी आवश्यक
है, वे हैं—
, . ! ?। % ~ [ ] < > { } @ # * - + = ( ) _ ₹ " '
: ; / € $ © × ÷
इसके बाद 1 2 3 4 5
6 7 8 9 और 0 हिन्दू अरबी अंक तथा १ २ ३ ४ ५ ६
७ ८ ९ और ० देवनागरी लिपि के अंक भी हैं। बहुत सारे संयुक्ताक्षर जैसे ज्ञ क्ष त्र
श्र क्र स्र आदि भी हैं। गणित या विज्ञान के लिए बहुत सारे संकेतों का प्रयोग भी हिन्दी
में होता है। यूनानी भाषा के अक्षर अल्फा, बीटा, गामा, सिग्मा, डेल्टा आदि कई अक्षर
भी आवश्यक हैं। इसी तरह रोमन वर्णमाला के ए बी सी डी के दोनों रूपों को भी सीखना हिन्दी
के लिए आवश्यक मान सकते हैं, क्योंकि यह लिपि दुनिया की कई भाषाओं
के लिए इस्तेमाल होती है।
ये सब मिलकर
वर्तमान समय में हिन्दी के संकेत समूह को समग्रता में दिखाते हैं। एक विशेष बात यह
है कि
'एै' कोई अक्षर नहीं है।
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