लिपि और लिखे
हुए को उसी रूप में पढ़ने की परंपरा के साथ शब्दों के उच्चारण पर आज हम चर्चा करेंगे।
हिन्दी में जो लिखते हैं, वही पढ़ते हैं। हिन्दी में अंग्रेज़ी
की तरह कोई अक्षर अनुच्चरित नहीं रह जाता। अंग्रेज़ी में ‘नाइफ़’,
‘साइकोलॉजी’, ‘डेट’, ‘काम’
जैसे बहुत सारे शब्द ऐसे उदाहरण हैं। दुनिया की समृद्ध भाषा फ़्रांसीसी
की बात करें, तो इसमें Mot को ‘मो’, Faux को ‘फो’,
Parlent और Parles दोनों को ‘पार्ल’, Maneger को ‘माँजे’,
तो Gourmand को ‘गुरमाँ’
पढ़ते हैं। अंग्रेज़ी से हम परिचित ही हैं। एक उदाहरण यहाँ हम दे रहे
हैं। 'ई' को अंग्रेज़ी में कम से कम नौ
प्रकार से व्यक्त करते हैं। e, ee, ea, ei, ey, eo, i, ie और
uay; ये सिर्फ़ एक ईकार के लिए हैं, जिनके उदाहरण
क्रमशः be, bee, sea, receive, key, people, machine, believe और kuay हैं। भारतीय भाषाओं की बात करें, तो बाँग्ला में ‘भव्य’ लिखते हैं,
‘भोव्ब’ पढ़ते-बोलते हैं;
‘लक्ष्मी’ लिखते हैं, ‘लोक्खी’
बोलते हैं। मैथिली की ऑनलाइन पत्रिका विदेह के संपादक डॉ गजेन्द्र ठाकुर
ने कहीं लिखा था कि हिन्दी से भी वैज्ञानिक उच्चारण मैथिली का है। उन्होंने
‘साठि’ शब्द का उदाहरण दिया है, जिसे मैथिली में ‘साइठ’ पढ़ते हैं।
उनका कहना है कि इकार की मात्रा व्यंजन के पहले लगती है और मैथिली में उसका उच्चारण
भी पहले होता है। लेकिन ‘सिनेमा’ को
‘इसनेमा’ नहीं पढ़ा जाता मैथिली में! इस प्रकार उनका दावा हर जगह सही नहीं हो पाता और सर्वमान्य सामान्य नियमों
को जान या समझ पाना मुश्किल हो जाता है। तमिल भाषा में क ख ग घ ङ यानी कवर्ग में दूसरे,
तीसरे और चौथे वर्ण यानी ‘ख’, ‘ग’ और ‘घ’ हैं ही नहीं। वहाँ सभी वर्गों के दूसरे, तीसरे और चौथे वर्ण लिपि में नहीं हैं। गाँधी के लिए काँधी लिखना पड़ेगा उसमें।
शुद्ध अंग्रेज़ी के अनुसार ख, घ, छ,
झ, ठ, ढ, ड़, ढ़, त, ध, भ, ष, ण, ङ, ञ, क़, ख़, ग़ जैसे अक्षर बोले ही
नहीं जा सकते। प्रमाण के लिए आप एबीसीडी के 26 वर्णों का उच्चारण
करके देख सकते हैं। वहाँ भारत के लिए ‘बारट’, तुम के लिए ‘टुम’, झगड़े के लिए
‘जगडे’ कहना पड़ता है। हमलोग यहाँ भारत
में अपनी वर्णमाला के कारण इन बाकी अक्षरों का उच्चारण भी कर लेते हैं। हम लोग अधिकतर
एबीसीडी में क्यू को किउ, वी को भी और डब्ल्यू को डब्लू कहते
हैं, जो ग़लत माना जाएगा। रूसी में ‘ह’
नहीं है, वहाँ ‘ह’
के स्थान पर ‘ख’ लिखते हैं,
जैसे नेहरू को नेखरू।
भाषाशास्त्र
में जब भी लिपि और उच्चारण की परीक्षा होगी, ऐसे परिणाम मिलेंगे।
ये हमारे लिए श्रेष्ठताबोध के कारण नहीं बनने चाहिए। भाषा, लिपि
और वर्ण भौगोलिक कारणों से भी प्रभावित होते हैं। हमें इनको हीनताबोध या श्रेष्ठताबोध
से नहीं जोड़ना चाहिए। छपाई के लिहाज से अंग्रेज़ी या रोमन लिपि की भाषाएँ हिन्दी,
संस्कृत आदि से बेहतर हैं। रोमन में सारे अक्षर प्रायः अलग-अलग होते हैं, जबकि हिन्दी में साथ और एक दूसरे से लगे
हुए। नागरी में हर शब्द या अक्षर के ऊपर एक रेखा खींची जाती है, जिसे शिरोरेखा कहते हैं। इसकी परंपरा अंग्रेज़ी में नहीं है। हिन्दी में मात्राएँ
भी कई बार व्यंजन से पहले लग जाती हैं। व्यक्ति में ‘क्त’
के पहले इकार की मात्रा लिखी या छापी जाती है।
लिपियों या
भाषाओं की तुलना का उद्देश्य बस नागरी और हिन्दी की विशेषता दिखाना है, न कि किसी श्रेष्ठताबोध का प्रदर्शन करना, जो अक्सर संस्कृतप्रेमियों
में घर बना लेता है।
० ०
०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें